सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - भाग(१) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - भाग(१)

बुआ जी! स्टोरूम में ये किसी की शादी की तस्वीर मिली है,इसमें ये महिला तो मम्मी जी जैसी लग रही हैं,लेकिन पुरूष तो पापा जैसे नहीं लग रहें,अविका ने अपनी बुआ सास से पूछा।।
सच! कहती है तू! ये तेरी सास सरगम ही है,दयमंती बुआ बोली।।
और ये कौन हैं? अविका ने पूछा।।
ये तेरे पहले ससुर हैं ,दयमंती बुआ बोली।।
तो क्या मम्मी की दो शादियाँ हुईं थीं?ये मुझे पुल्कित ने कभी नहीं बताया,अविका बोली।।
ये बात तो पुल्कित को भी पता नहीं है तो तुझे कैसे बताएंगा? दयमंती बुआ बोली।।
मुझे कुछ समझ नहीं आया बुआ जी! अविका बोली।।
वो ये कि तेरे ससुर कमलेश्वर ,सरगम के दूसरे पति थे,ये बात तीनों बच्चों में से किसी को नहीं पता,दयमंती बुआ बोलीं।।
लेकिन क्यों? अविका ने पूछा।।
क्योंकि कमलेश्वर नहीं चाहता था कि कोई बच्चों से ये कहें कि वो उनका दूसरा बाप है,दयमंती बुआ बोली।।
आप पूरी बताइए ना बुआ! ऐसे बात को गोल गोल मत घुमाइए,अविका बोली...
तू क्या सरगम और कमलेश्वर की जिन्द़गी के बारें में सुनना चाहती है,दयमंती बुआ बोलीं।
जी!बुआ जी! मुझे भी जानना है आखिर पूरी बात क्या है?अविका बोली।।
तो तू सरगम की पूरी कहानी सुनना चाहती है,दयमंती बुआ बोलीं।।
जी! बुआ जी! आखिर क्या थी मम्मी की कहानी,उन्हे दो शादियाँ क्यों करनी पड़ी?अविका ने पूछा।।
तो सुन मैं सुनाती हो तुझे सरगम की कहानी और इतना कहकर दयमंती बुआ ने कहानी सुनानी शुरू की......

ये तब कि बात है जब कमलेश्वर और सरगम छोटे हुआ करते थे,दोनों के पिता रेलवें में काम करते थे,कमलेश्वर के पिता स्टेशन मास्टर थे और सरगम के पिता अभियन्ता थे,दोनों के औहदे अच्छे थे इसलिए दोनों को बहुत बहुत बड़े सरकारी घर मिले हुए थे रेलवें काँलोनी में,घर भी बहुत बड़े थे बिल्कुल बंगलों की तरह,वहीं दोनों बच्चे अपने अपने परिवार के साथ रहा करते थे।।
कमलेश्वर के पिता रामधनी सिंह ,माँ सुमित्रा और दो बड़े भाई बहन,कमलेश्वर सब में छोटा और दुलारा था,सरगम अपने माँ बाप की इकलौती सन्तान थी,उसके पिता शशीकांत गुप्ता और माँ प्रतिमा,रामधनी और सुमित्रा से उम्र में काफी छोटे थे इसलिए प्रतिमा, सुमित्रा को जीजी और शशिकांत ,रामधनी को बड़े भइया कहकर पुकारा करते थे।।
काँलोनी में और भी परिवार थे लेकिन उनके औहदे इन दोनों से कम थे इसलिए इन दोनों परिवारों का रेलवे के और घरों से ज्यादा सम्पर्क ना था लेकिन उन सबके दुख सुख में वें शामिल जरूर होते थे,लेकिन दोनों परिवार ही एक-दूसरे की खुशियों में ज्यादा शामिल होते थे,इसी तरह दोनों बच्चे सरगम और कमलेश्वर साथ स्कूल जाते और साथ साथ खेलते हुए बड़े हो रहे थे।।
शशिकांत ने प्रतिमा से प्रेमविवाह किया था वो भी अपने परिवार की मरजी के बिना इसलिए शशीकांत के परिवार वालों के हृदय में शशी के लिए कोई स्थान ना था,वो शशी से इसलिए नाराज थे क्योंकि प्रतिमा के माँ बाप नहीं थे,वें एक अनाथ लड़की को अपने घर की बहु नहीं बनाना चाहते थे, बस प्रतिमा के एक दूर के मामा थे जिन्होंने ही उसे पालपोस कर बड़ा किया था,बस इसीलिये शशी अपने परिजनों के पास नहीं जाता था अपने परिवार के साथ,कोई भी तीज-त्यौहार आता वो अकेले ही मनाते लेकिन उधर रामधनी का परिवार तीज त्यौहार मनाने अपने गाँव ही जाता था।।
सबकी जिन्द़गी ऐसे ही बीत रही थी,सरगम और कमल के बीच भी दोस्ती और झगड़े चलते रहते थे,एक दिन तो कुछ ऐसा हुआ.....
सरगम अपनी गुड़िया का ब्याह रचा रही थी,उसने मुहल्ले की और भी लड़कियों को शादी की दावत में बुलाया था,गुड़िया उसकी थी और दूल्हा किसी और लड़की का था,लड़कियों का खेल था इसलिए उसने कमलेश्वर को बुलाना उचित नहीं समझा।।
ब्याह रेलवें कालोनी के बड़े से पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर था,प्रतिमा ने उस दिन सबके लिए बहुत सारे पकवान बनाएं और शादी की सारी ब्यवस्थाएं उसी ने की।।
पत्तल,सकोरे,शादी की साज सजावट सबने उसने ही की थी,उसे भी अच्छा लग रहा था क्योंकि वो तो अनाथ थी ,उसके नाज और नखरे उसके पति के सिवाय किसी और ने नहीं उठाएं थे,इसलिए वो अपनी बेटी सरगम के सभी नखरे उठाती थी।।
उस दिन इतवार था,कमलेश्वर देर तक सोया रहा और फिर दोपहर तक बाहर आया खेलने के लिए,लेकिन ये क्या?वहाँ तो गुड़िया का ब्याह रचाया जा रहा था वो भी सरगम की गुड़िया का और उसने मुझे बुलाया ही नहीं,चुड़ैल कहीं की....
और वो गुस्से में दनदनाते हुए सरगम के पास पहुँचकर बोला....
सरगम! आज तेरी गुड़िया का ब्याह था और तूने मुझे नहीं बुलाया ।।
ये सब लड़कियों के काम हैं,तुम लड़कों का भला यहांँ क्या काम? सरगम बोली।।
मैं तो तेरा अच्छा दोस्त हूँ ना! देख तूने ये भगवान जी का काला धाँगा मेरे गले में बाँधते हुए कहा था ना! कि मै तेरा पक्का वाला दोस्त हूँ,कमलेश्वर ने प्रमाणित किया....
हाँ! कहा था तो!तू क्या कर लेगा? जा नहीं बुलाया और ना कभी बुलाऊँगी? सरगम भी तैश़ में आ गई।।
तेरी ये मज़़ाल ,तू मुझे नहीं बुलाएगी और इतना कहकर कमलेश्वर ने सरगम की गुड़िया फेँक दी और सारा सामान भी बिखेर दिया.....
सरगम भी कहाँ कम थी? उसने कमलेश्वर की हथेली अपने मुँह में भर ली और इतनी जोर से दाँत गड़ाए कि खून निकल आया,कमलेश्वर दर्द से चीख उठा उसकी चीख सुनकर सब बाहर भागें तब तक कमलेश्वर की पूरी हथेली खून से भर चुकी थी और काटने के बाद सरगम डर के मारे घर में कहीं छुप गई।।
शशीकांत ने फौरन कमलेश्वर को अपनी साइकिल में बैठाया और ले चले डाक्टर के पास पट्टी कराने,क्योंकि उस समय रामधनी घर पर नहीं थे और फिर चोट तो शशीकांत की बेटी ने दी थी कमलेश्वर का ही ये करने का फर्ज बैठता था।।
थोड़ी देर में शशीकांत,कमल को लेकर घर आ गए,कमल को टिटनेस का इंजेक्शन भी लगवाना पड़ा,पट्टी भी हुई और हफ्ते भर के लिए दवाई की पुड़िया भी खाने को मिली,बेवजह इतना सारा कष्ट,वो बिल्कुल भरा बैठा था सरगम पर,जब कमलेश्वर की पट्टी हो गई तो सुध आई सरगम को डाँटने की लेकिन सरगम तो गूलर का फूल हो गई थी,सबने इतना ढ़ूढ़ा लेकिन नहीं मिली।।
अब तो प्रतिमा रोने को हो आई और करम पर हाथ धरकर बैठ गई उसे लगा ऐसा ना हो कि उसकी बच्ची डर के मारे किसी रेल में बैठकर कहीं चली गई हो,अब चारों ओर अफरातफरी मच गई,मुहल्ला भर सरगम को खोजने में लग गया लेकिन सरगम कहीं ना मिली।।
रेलवे पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवा दी गई,पुलिस भी ढूढ़ने मे लग गई,आधी रात होने को आई सरगम को खोजते खोजते लेकिन सरगम कहीं ना मिली,माथे पर हाथ रखकर सब बाहर बैठे थे,शशीकांत को हल्की ठंड महसूस हुई तो उसने प्रतिमा से कहा कि भीतर से शाँल ले आओ।।
प्रतिमा भीतर शाँल लेने पहुँची ,उसने कपड़ो की बड़ी सी टोकरी को टटोला तो सरगम उन्हीं कपड़ो के बीच में घुसी सो रही थी,जैसे प्रतिमा ने सरगम को देखा तो मारे खुशी के चिल्ला उठी....
मिल गई सरगम...सरगम...मिल गई...!!
सब दौड़े दौड़े भीतर आए,शशीकांत और प्रतिमा ने उसे अपने सीने से लगा लिया.....
और तभी कमलेश्वर भी भागकर आ पहुँचा और उसने सरगम से पूछा.....
कहाँ चली गई थी तू! मैं तो डर ही गया था....
मैं बहुत डर गई थी इसलिए इस टोकरी में आकर छुप गई फिर मुझे नींद आ गई,सरगम ने मासूमियत से जवाब दिया।।
अब बड़ो के बोलने लायक कुछ बचा ही नहीं था,दोनों ने इस झगड़े को आपस में सुलझा लिया था।।
दिन बीतते जा रहे थे,दोनों बच्चे धीरे धीरे बड़े हो रहे थे,
अब सरगम ग्यारह की पूरी होकर बारहवें साल में पहुँच गई थी और कमलेश्वर भी तेहरवें साल में पहुँच गया ,दोनों की दोस्ती अब भी बरकरार थी,हलांकि कभी कभी प्रतिमा ,सरगम से कहती भी थी कि अब तू बड़ी हो रही है कमल से ज्यादा दोस्ती ठीक नहीं ।।
क्यों? वो तो मेरे बचपन का दोस्त है,उससे दोस्ती ठीक क्यों नहीं? सरगम पूछती ।।
सरगम का जवाब सुनकर प्रतिमा भी चुप हो जाती,अब वो भी क्या कहती ? और कैसे समझाती सरगम को....
इसी बीच प्रतिमा दो बार गर्भवती हुई लेकिन जैसे ही दो तीन महीने ऊपर जाते तो उसका शरीर उस बच्चे को स्वीकार ना करता और उसके गर्भ को सूना करके पुनः भगवान के पास लौट जाता....
अब प्रतिमा और शशीकांत ने ये सोचकर संतोष कर लिया था कि चलो एक संतान तो है,वें सन्तानहीन तो नहीं है और फिर उनकी बेटी किसी राजकुमारी से कम तो नहीं।।
वक्त मुट्ठी से रेत की तरह फिसला जा रहा था....
और एक दिन शशीकांत रेल में किसी गड़बडी़ को देख रहे थे,रेल के इंजन में बाहर की ओर खड़े होकर कुछ ठीक करने का प्रयास कर रहे थे और तभी उन्हें बिजली का झटका सा लगा , वे अपना संतुलन खो बैठे और रेलवे की पटरी पर आ कर गिरे,तभी उनका सिर पटरी से इतनी जोर से टकराया कि फिर वो कभी भी खड़े ना हो सके,शायद सिर में गम्भीर चोट आई थी ।।
रेलवे कालोनी में जब उनकी मौत की खब़र पहुँची तो हाहाकार मच गया,प्रतिमा को तो ना कुछ होश था और ना कोई ख़बर,उसके तो आँसू भी ना निकले थे,शशीकांत का परिवार भी गाँव से आ पहुँचा था,जवान बेटे की मौत का इलजाम बहु के ऊपर थोपकर और बेटे की अस्थियां लेकर वें भी रवाना हो गए,रह गए माँ बेटी जिन्हें रामधनी के परिवार ने सम्भाला.....
खब़र सुनकर प्रतिमा के मामा भी आ पहुँचे,उन्हे देर से ख़बर मिली,इसलिए पहले ना आ पाएं और जिस रोज़ मामा आएं उसी रात को सरगम को इस दुनिया में अकेला छोड़कर प्रतिमा भी अपने शशी के पास चली गई....
रोती बिलखती सरगम को कमलेश्वर की माँ ने सम्भाला,इतनी सी उम्र में उस पर पहाड़ टूट पड़ा था,प्रतिमा का अन्तिम संस्कार करके बूढ़े मामा अपने भांजी की अस्थियां और अपनी नातिन को लेकर गाँव जाने को रवाना हो गए और पीछे छूट गई कमलेश्वर और सरगम की दोस्ती.....
इधर सरगम आँसू बहाती रही और उधर कमलेश्वर को उसके घरवालों ने बड़ी मुश्किल से सम्भाला...

क्रमशः...
सरोज वर्मा.....